नियंत्रण रेखा व अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी गोलीबारी के कारण सीमा से लगे जम्मू एवं कश्मीर के गांवों में रहने वाले लगभग 30 हजार लोगों की जिंदगी बद से बदतर हो गई हैं। जम्मू, कठुआ और सांबा जिले में सीमा के आसपास रहने वाले लोगों को अपना घर छोड़कर राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर होना पड़ा है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि दोनों देशों की शत्रुता में बस केवल युद्ध की ही कमी रह गई है और यहां तोपों की आवाजाही और युद्धक विमानों की गड़गड़ाहट नहीं गूंजी है। जम्मू एवं कश्मीर में नियंत्रण रेखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर पाकिस्तानी मोर्टारों ने आठ नागरिकों की जान ले ली है, जबकि 60 लोग घायल हुए हैं। घायल होने वालों में पांच सुरक्षाकर्मी भी हैं, जिसमें चार सेना का जवान और एक सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) का जवान है। एक भारतीय सैन्य अधिकारी ने कहा कि पाकिस्तानी सेना और अर्धसैनिक रेंजरों ने बीते पांच दिनों में 35 बार संघर्ष विराम का उल्लंघन किया है। भारतीय सेना और बीएसएफ ने उनका मुंहतोड़ जवाब दिया है, लेकिन इससे सीमा पर रहने वाले ग्रामीणों का दर्द तो कम नहीं होगा। आर.एस.पुरा राहत शिविर में एक ग्रामीण ने कहा, कि 1971 के युद्ध के दौरान आर.एस.पुरा इलाके में हुई गोलीबारी से भी यह बदतर स्थिति है। हमने अपना सबकुछ पीछे छोड़ दिया है और आईटीआई की इमारत में शरण ले रखा है। उन्होंने कहा, कि केंद्र की नई सरकार ने वादा किया था कि सीमा पर शांति होगी। हमने उसी वादे की खातिर भारतीय जनता पार्टी को अपना मत दिया था। देखते हैं हमारा क्या होता है। जम्मू, सांबा और कठुआ जिले में सीमा पर बसे गांवों में |
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