brijlal
Monday, 17 June 2024
Monday, 4 September 2023
Saturday, 10 December 2022
Monday, 3 October 2022
दुर्गा जी के नो रूप औषधि पौधों में
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*9 औषधियों के पेड़ पौधे जिन्हें नवदुर्गा कहा गया है -*
*(1) प्रथम शैलपुत्री (हरड़) :* कई प्रकार के रोगों में काम आने वाली औषधि हरड़ हिमावती है जो देवी शैलपुत्री का ही एक रूप है.यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है यह पथया, हरीतिका, अमृता, हेमवती, कायस्थ, चेतकी और श्रेयसी सात प्रकार की होती है
*(2) ब्रह्मचारिणी (ब्राह्मी) :* ब्राह्मी आयु व याददाश्त बढ़ाकर, रक्तविकारों को दूर कर स्वर को मधुर बनाती है.इसलिए इसे सरस्वती भी कहा जाता है
*(3) चंद्रघंटा (चंदुसूर) :* यह एक ऎसा पौधा है जो धनिए के समान है. यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है इसलिए इसे चर्महंती भी कहते हैं
*(4) कूष्मांडा (पेठा) :* इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है.इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं. इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो रक्त विकार दूर कर पेट को साफ करने में सहायक है मानसिक रोगों में यह अमृत समान है
*(5) स्कंदमाता (अलसी) :* देवी स्कंदमाता औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं. यह वात, पित्त व कफ रोगों की नाशक औषधि है.इसमे फाइबर की मात्रा ज्यादा होने से इसे सभी को भोजन के पश्चात काले नमक सेभूंजकर प्रतिदिन सुबह शाम लेना चाहिए यह खून भी साफ करता है
*(6) कात्यायनी (मोइया) :* देवी कात्यायनी को आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका व अम्बिका.इसके अलावा इन्हें मोइया भी कहते हैं.यह औषधि कफ, पित्त व गले के रोगों का नाश करती है
*(7) कालरात्रि (नागदौन) :* यह देवी नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती हैं.यह सभी प्रकार के रोगों में लाभकारी और मन एवं मस्तिष्क के विकारों को दूर करने वाली औषधि है.यह पाइल्स के लिये भी रामबाण औषधि है इसे स्थानीय भाषा जबलपुर में दूधी कहा जाता है
*(8) महागौरी (तुलसी) :* तुलसी सात प्रकार की होती है सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरूता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र. ये रक्त को साफ कर ह्वदय रोगों का नाश करती है. एकादशी को छोडकर प्रतिदिन सुबह ग्रहण करना चाहिए
*(9) सिद्धिदात्री (शतावरी) :* दुर्गा का नौवां रूप सिद्धिदात्री है जिसे नारायणी शतावरी कहते हैं. यह बल, बुद्धि एवं विवेक के लिए उपयोगी है.विशेषकर प्रसूताओं (जिन माताओं को ऑपरेशन के पश्चात अथवा कम दूध आता है) उनके लिए यह रामबाण औषधि है इसका सेवन करना चाहिए
Sunday, 3 January 2021
सहकारी संस्थाओं पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया है कि सहकारी समितियां सूचना के अधिकार कानून के दायरे में नहीं आती हैं। न्यायमूर्ति के एस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति ए के सीकरी की खंडपीठ ने सभी सहकारी समितियों को सूचना के अधिकार कानून के दायरे में लाने संबंधी केरल सरकार के परिपत्र को सही ठहराने वाला उच्च न्यायालय का निर्णय निरस्त करते हुए यह व्यवस्था दी। न्यायाधीशों ने कहा कि इस तरह की किसी संस्था के देखरेख या नियंत्रण मात्र से ही वह सार्वजनिक प्राधिकारी संस्था नहीं बन जाती। न्यायाधीशों ने कहा कि निश्चित ही समितियां रजिस्ट्रार और संयुक्त रजिस्ट्रार जैसे विधायी प्राधिकारियों और सरकार के नियंत्रण में रहती हैं, लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि समितियों के कामकाज पर सरकार का किसी तरह का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रुप से नियंत्रण रहता है।
राज्य सरकार ने मई, 2006 में सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को सूचित किया था कि राज्य विधान सभा द्वारा बनाए गए कानूनों के तहत बनी सभी संस्थाएं सार्वजनिक प्राधिकरण हैं और इस लिए सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार के प्रशासनिक नियंत्रण में आने वाली सभी सहकारी संस्थायें सार्वजनिक प्राधिकरण हैं।
शीर्ष अदालत ने राज्य सरकार के इस निर्णय को निरस्त करते हुए कहा कि इन समितियों के संदर्भ में रजिस्ट्रार का अधिकार सिर्फ इनकी देखरेख और नियंत्रण तक ही सीमित है। न्यायालय ने कहा कि सिर्फ देखरेख या उनका नियंत्रण करने मात्र से ऐसी संस्था को सूचना के अधिकार कानून की धारा 2 के दायरे में सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं माना जा सकता।
सहकारी समितियां सूचना के अधिकार के दायरे में नही आती हैं।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि सहकारी समितियाँ RTI के दायरे में नहीं आतीं
15 अक्टूबर 2013 को भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सहकारी समितियाँ सूचना के अधिकार (आरटीआई) के दायरे में नहीं आती हैं।
न्यायमूर्ति केएस राधाकृष्णन और न्यायमूर्ति एके सीकरी की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि सरकार द्वारा किसी निकाय का पर्यवेक्षण या नियमन उस निकाय को सार्वजनिक प्राधिकारी नहीं बनाएगा।
भारत के सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणियां
• सोसायटी निश्चित रूप से रजिस्ट्रार, संयुक्त रजिस्ट्रार और सरकार जैसे वैधानिक अधिकारियों के नियंत्रण के अधीन हैं। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता है कि राज्य समाज के उन मामलों पर कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष नियंत्रण रखता है जो गहन और सभी व्यापक हैं।
• सहकारी समितियों, जो बॉडी कॉरपोरेट हैं, पर क़ानून के तहत पर्यवेक्षी या सामान्य विनियमन, शरीर की गतिविधियों को प्रस्तुत नहीं करता है, इसलिए राज्य के ऐसे नियंत्रण के अधीन विनियमित किया जाता है ताकि इसे राज्य या साधन के अर्थ में लाया जा सके। राज्य की।
• किसी निकाय द्वारा या अन्यथा किसी निकाय के रूप में मात्र पर्यवेक्षण या विनियमन धारा 2 (एच) (डी) (i) सूचना का अधिकार अधिनियम के अर्थ के भीतर उस निकाय को एक सार्वजनिक प्राधिकरण नहीं बनाएगा। दूसरे शब्दों में, किसी निकाय के स्वामित्व वाले निकाय या उपयुक्त सरकार द्वारा पर्याप्त रूप से निकाय की तरह, उपयुक्त सरकार द्वारा निकाय का नियंत्रण भी पर्याप्त होगा और केवल पर्यवेक्षी या नियामक नहीं होगा।
केरल सरकार द्वारा एक परिपत्र को खारिज करते हुए भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया था।
मई 2006 में सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को केरल सरकार के परिपत्र के अनुसार, राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए कानूनों द्वारा गठित सभी संस्थान एक सार्वजनिक प्राधिकरण हैं और इसलिए, सहकारी के रजिस्ट्रार के प्रशासनिक नियंत्रण में आने वाली सभी सहकारी संस्थाएं सोसायटी भी पब्लिक अथॉरिटी हैं।
सहकारी समितियों के बारे में
• सहकारी समितियां भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची की प्रविष्टि 32 राज्य सूची के तहत एक राज्य विषय है।
• संवैधानिक (97 वें संशोधन) अधिनियम, 2011 के अनुसार सहकारी समिति का गठन अनुच्छेद 19 (1) (i) के तहत एक मौलिक अधिकार है।
• संवैधानिक (97 वां संशोधन) अधिनियम, 2011 ने अनुच्छेद 19 (l) (i) और (अनुच्छेद 43B यानी), सहकारी समितियों का संवर्धन और जोड़ा के शब्द "या यूनियनों" के बाद शब्द "या सहकारी समितियों" को जोड़ा गया। भाग- IXB यानी सहकारी समितियां।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के बारे में
यह नागरिकों के लिए सूचना के अधिकार की व्यावहारिक व्यवस्था को स्थापित करने के लिए सार्वजनिक प्राधिकरणों के नियंत्रण के तहत सूचना तक पहुँच सुरक्षित करने के लिए, प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण के काम में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिए एक अधिनियम है।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 2 (एच) के अनुसार, सार्वजनिक प्राधिकरण का अर्थ है, स्व-सरकार की स्थापना या गठित किया गया कोई भी प्राधिकरण या निकाय या संस्था-
(ए) संविधान द्वारा या उसके तहत
(ख) संसद द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा
(ग) राज्य विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून द्वारा
(डी) उपयुक्त सरकार द्वारा जारी अधिसूचना या आदेश द्वारा, और कोई भी शामिल है-
मैं। शरीर के स्वामित्व, नियंत्रित या पर्याप्त रूप से वित्तपोषित
ii। गैर-सरकारी संगठन उपयुक्त सरकार द्वारा प्रदान की गई धनराशि से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित करते हैं।
iii। गैर सरकारी संगठन उचित सरकार द्वारा प्रदान की गई धनराशि से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से वित्तपोषित करते हैं
Monday, 28 December 2020
important data.
*इसे सेव कर सुरक्षित कर लेवे। वाट्सअप पर ऐसी पोस्ट कम ही आती है।*
विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो पर किया अनिल अनुसंधान )
■ काष्ठा = सैकन्ड का 34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुटि = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुटि = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 72 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महालय = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )
सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।
तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।
चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।
पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।
छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच), मोह, आलस्य।
सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।
आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।
नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।
दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।
*उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।*
*यह आपको पसंद आया हो तो अपने बन्धुओं को भी शेयर जरूर कर अनुग्रहित अवश्य करें यह संस्कार का कुछ हिस्सा हैं 🌷 💐*
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